अधिकरणकारक - अर्थ एवं प्रयोग - (उदाहरण-सहित)

जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो, उसे अधिकरणकारक कहते हैं। इसके चिह्न हैं- 'में' और 'पर'। जैसे– शिक्षक वर्ग में पढ़ा रहे हैं। महेश छत पर बैठा है।

यहाँ, 'वर्ग में' और 'छत पर' अधिकरणकारक हैं, क्योंकि इनसे पढ़ाने और बैठने की क्रिया के आधार का ज्ञान होता है।मे'और 'पर' अधिकरणकारक के चिह्न हैं।
इनका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है—

(क) 'में' का प्रयोग—

1.अधिकरणकारक के रूप में- वस्तु, स्थान आदि के भीतर की स्थिति बतलाने

  • छात्र कमरे में है।
  • पानी में मछली है।

2. अधिकरणकारक के रूप में— प्रेम, घृणा, दोस्ती, दुश्मनी आदि भावों को प्रकट करने में—

  • मोहन और सोहन में मित्रता है।
  • दोनों में बहुत प्रेम है।
  • आप में शराफत कूट-कूटकर भरी है।

3. अधिकरणकारक के रूप में- समय का बोध कराने हेतु—

  • मैं सुबह में व्यायाम करता हूँ।

4. अधिकरणकारक के रूप में- वस्त्र या पोशाक के संदर्भ में—

  • औरतें साड़ी में अच्छी लगती हैं। आप धोती में अच्छे लगते हैं।

5. अधिकरणकारक के रूप में- जगह, स्थान आदि बतलाने में वह मुम्बई रहता है(में लुप्त है) (में-लुप्त है)

  • मैं अब दिल्ली नहीं रहता हूँ।

6. करणकारक के रूप में- किसी वस्तु का मूल्य बतलाने हेतु- यह पुस्तक चालीस रुपए में मिलती है। वह वस्त्र कितने रुपए में है?

(ख) 'पर' का प्रयोग अधिकरणकारक में निम्नलिखित स्थितियों में होता है—

1. ऊपर का बोध कराने के लिए–

  • वह छत पर बैठा है। (छत के ऊपर)

2. समय, दूरी तथा अवधि का बोध कराने के लिए–

  • वह दस बजकर पाँच मिनट पर स्कूल गया। (समय)
  • राँची यहाँ से दस मील पर है।(दूरी)
  • वह पाँच दिनों पर लौटा। (अवधि)

3. संप्रदानकारक के रूप में— मूल्य बताने के लिए—

  • आपका ईमान पैसे पर बिक गया।
  • वह एक हजार रुपए मासिक पर काम नहीं करेगा।