अयोगवाह

अनुस्वार और विसर्ग को संस्कृत में अयोगवाह माना गया है, क्योंकि ये दोनों न तो स्वर है और न व्यंजन। पं. किशोरीदास वाजपेयी ने सच ही कहा है-- "इनकी स्वतंत्र गति नहीं, इसलिए ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के पूर्व नहीं, पश्चात् आते हैं, इसलिए ये व्यंजन भी नहीं है।" दूसरे शब्दों में, स्वर और व्यंजन में जो-जो गुण हैं, वे गुण इनमें नहीं। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को अयोगवाह कहा जाता है, अर्थात् ये न तो स्वर से योग है और न व्यंजन से अयोग, फिर भी अर्थ का निर्वाह (वाह) करते हैं, अतः 'अयोगवाह' है।