करणकारक - अर्थ एवं प्रयोग - (उदाहरण-सहित)

जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करे उसे करणकारक कहते हैं। इसके चिह्न हैं 'से' और 'द्वारा'। जैसे–

मैं कलम से लिखता हूँ।(कलम - लिखने का साधन)
उसकी उँगली चाकू द्वारा कट गई।(चाकू - कटने का साधन)

यहाँ, 'कलम से' और 'चाकू द्वारा'- करणकारक हैं, क्योंकि ये वस्तुएँ क्रिया-संपादन में साधन के रूप में प्रयुक्त हैं।

'से' का प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है—

1.अपादान और करण दोनों कारकों का चिह्न 'से' है, लेकिन दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अंतर है। जहाँ करण का 'से' साधन का अर्थ सूचित करता है, वहाँ अपादान का 'से' अलगाव का। जैसे–

मैं कलम से लिखता हूँ।(कलम से-करणकारक)
पेड़ से पत्ते गिरते हैं।(पेड़ से अपादानकारक)

2. करण का प्रयोग 'हेतु' के अर्थ में

वह किसी काम से आया है। (काम से–काम हेतु)

3. करण का प्रयोग कारण बतलाने के अर्थ में

वह प्लेग से मर गया। (मरने का कारण प्लेग)

4. करण का प्रयोग प्रेरणार्थक क्रिया में

जेलर कैदी से काम करवाता है। (कर्ता जेलर है, कैदी नहीं)
प्रकाशक लेखक से किताब लिखवाता है।(कर्ता प्रकाशक है, लेखक नहीं)

5. अपादान का प्रयोग दिशा-बोध कराने में

बिहार झारखंड से उत्तर है।

6. अपादान का प्रयोग तुलना के अर्थ में

सीता गीता से सुन्दर है।
मोहन सोहन से लंबा है।

7. अपादान का प्रयोग समय-बोध कराने में

मैं सुबह से पढ़ रहा हूँ।
वह दो वर्षों से तबला सीख रहा है।

8. कर्ताकारक के रूप में, जब अशक्ति प्रकट करनी हो

राम से रोटी खाई नहीं जाती।(कर्मवाच्य)
सीता से चला नहीं जाता।(भाववाच्य)

9. कर्मकारक के रूप में, जब क्रिया द्विकर्मक रहती है

छात्र गुरु से हिन्दी सीख रहा है।
सीता गीता से वीणा सीख रही है।

10. जाति, स्वभाव, प्रकृति, लक्षण आदि प्रकट करने में

राम जाति से क्षत्रिय थे।
वे स्वभाव से दयालु हैं।