संयोजक चिह्न में अशुद्धियों का शोधन - वर्तनी
संयोजक चिह्न—यह दो शब्दों को जोड़ता है। इस चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में करें । जैसे—
(क) जब दोनों पद प्रधान हों—माता-पिता, भाई-बहन, लड़का-लड़की, राजा-रानी, सीता-राम, राधा-कृष्ण, भात- दाल, लोटा- डोरी, घर-द्वार आदि ।
(ख) विलोम शब्दों में– झूठ-सच, अच्छा-बुरा, अमीर-गरीब, सुखदुःख, स्वर्ग-नरक, लाभ-हानि, जन्म-मरण, यश-अपयश, जयपराजय, शुभ-अशुभ आदि ।
(ग) एकार्थक बोधक सहचर शब्दों में –कपड़ा-लता, कूड़ा-कचरा, चमक-दमक, चाल-चलन, जी-जान, दीन-दुःखी, धूम-धाम, बाल
(घ) एक शब्द सार्थक और दूसरा निरर्थक हो - गाय-वाय, पानी-वानी, उलटा-पुलटा, रोटी-वोटी, भात-बात, झूठ-मूठ, अनाप-शनाप आदि।
(ङ) पुनरुक्ति या द्विरुक्ति में गाँव-गाँव, शहर-शहर, बस्ती-बस्ती, अपना-अपना कोई-कोई, क्या-क्या, लाल-लाल, पीला-पीला, मीठेमीठे, ऊपर-ऊपर, धीरे-धीरे, अरे अरे, छि:छि हाय-हाय आदि।
(च) दो विशेषण पदों में— एक-दो, दो-चार, दस-बीस, पहला- दूसरा, चौथा-पाँचवाँ आदि
(छ) सा, से, सी में– कम-से-कम, अधिक से अधिक, बहुत से लोग, बहुत-सी बातें, चाँद-सा मुखड़ा, चाँद-सा चमकीला, चाँदी-सी चमक आदि।
(ज) जब दो शब्दों के बीच संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लुप्त हों। जैसे–
राम-लीला, लीला-भूमि, मानव-जीवन, जीवन-दर्शन, शब्द-भेद, भेद-ज्ञान, ज्ञान-सागर, सागर-सम्राट, संत-मत, मत-भिन्नता, लेखनकला, कला-मंदिर आदि। उदाहरण:
ज्ञान-सागर — (ज्ञान का सागर/ज्ञान के सागर)
शब्द-भेद — (शब्दों के भेद/शब्द का भेद)
लेखन-कला — (लेखन की कला)
(झ) पदों, दुकानों, संस्थाओं, समितियों आदि के नाम बिना योजक-चिह्न के लिखें। जैसे– उपकुलपति, भूतपूर्व सैनिक, पाटलिपुत्र, किताबघर, सोवियत संघ, नागरी प्रचारिणी सभा, बिहार दुग्ध सहकारी समिति आदि।