सूत्र द्वारा पुलिंग शब्दों की पहचान
हिंदी व्याकरण में पुलिंग शब्दों को पहचानने के कुछ सूत्र हैं, वैसे सूत्रों से पुलिंग शब्दों की पहचान की जाती है। ये निम्नलिखित हैं-
1. सूत्र : आ → ए=पुंलिग।
बहुवचन बनाने पर, अप्राणीवाचक संज्ञाओं के 'आ' यदि 'ए' में बदल जाएं, तो वे संज्ञाएं, प्रायः पुलिंग होंगी। जैसे–
एकवचन (पुं०) | कमरा | सोफा | पहिया | पूआ |
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बहुवचन (पुं०) | कमरे | सोफे | पहिए | पूए |
ऐसी और संज्ञाएँ है- मेला, केला, झमेला, ठेला, ढेला, कपड़ा खपड़ा,एकतारा, तारा (नक्षत्र), जूता, छाता, कुरता, रास्ता, अंगूठा, पराठा, छींटा, खर्राटा, ताला, मसाला, आँवला, घोसला, आईना, खजाना, ठिकाना, झरना, पर्दा, फंदा, बंदा, कंधा, तकिया, धनिया (पौधा), आदि।
2. सूत्र : आँ → एँ=पुंलिग।
बहुवचन बनाने पर 'आँ' यदि 'एँ' में बदल जाए, तो वे संज्ञाएँ प्रायः पुंलिंग होंगी। जैसे–
- रोआँ—रोएँ
- धुआँ—धुएँ
- कुआँ—कुएँ
3. सूत्र : इ/ई → इ/ई=पुंलिंग।
कुछ द्रव्यवाचक तथा जातिवाचक संज्ञाओं की इ/ई का रूप बहुवचन में नहीं बदलता, अर्थात उनका रूप ज्यों-का-त्यों रह जाता है। वैसी संज्ञाएँ प्राय: पुंलिंग होती हैं। जैसे–
एकवचन (पुं.) | वलि | वारि | दही | मोती |
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बहुवचन (पुं.) | वलि | वारि | दही | मोती। |
ऐसी और संज्ञाएँ है- जलधि, गिरि, पक्षी, मही (मट्ठा), पानी, जी, घी आदि। अपवाद चीनी।
4. सूत्र : अ → अ=पुंलिंग
कुछ अप्राणिवाचक संज्ञाओं का 'अ' का रूप बहुवचन में नहीं बदलता, अर्थात् उनका रूप ज्यों-का-त्यों रह जाता है। वैसी संज्ञाएँ पुंलिंग होती हैं।जैसे–
एकवचन (पुं०) | नख | संसार | फैलाव | उपाय | महत्त्व | अध्यक्ष |
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बहुवचन (पुं०) | नख | संसार | फैलाव | उपाय | महत्त्व | अध्यक्ष |
ऐसी और संज्ञाएँ हैं- कल, जल, फल, छल, शंख, सुख, दुःख, मुख, अक्ष, पक्ष, वक्ष,लक्ष, भूषण, पोषण, हरण, कंकण, आकार, विकार, उपहार, समाहार, बहाव, बहकाव, उतराव, चढ़ाव, विनय, परिणय, अनुनय, प्रणय, पुरुषत्व, नारीत्व, सतीत्व, अध्याय, न्याय, समुदाय, अभिप्राय, पत्र, पात्र, चित्र, मित्र आदि।