स्वर मात्रा एवं स्वर-व्यंजन संयोग
"स्वर के संकेत - चिह्न को मात्रा कहते हैं।" स्वर के दस संकेत-चिह्न हैं, लेकिन 'अ' का कोई संकेत-चिह्न या मात्रा नहीं होती है। 'अ' स्वर जब किसी व्यंजन से मिलता है, तब व्यंजन का हल् चिह्न () लुप्त हो जाता है। जैसे— क् + अ = क । ख् + अ = ख।
स्वर व्यंजन संयोग (मेल) को नीचे की तालिका से समझें-
|स्वर||अ||आ||इ||ई||उ||ऊ||ऋ||ए||ऐ||ओ||औ| |व्यंजन|क् |क् |क् |क् |क् |क्| क् |क् |क् |क् |क् |सयोग|क|का|कि|की|कु|कू|के|कै|को|कौ|
कुछ विशेष निर्देश: (1) ये मात्राएँ व्यंजनों के पहले या बाद में अथवा ऊपर या नीचे लगती हैं। लेकिन, 'र्' व्यंजन के साथ जब उ (,) या ऊ ( ू) की मात्रा लगती है, तब यह ठीक बीच में लगाई जाती है। जैसे—
र् +3 (,) = रुरुंज, रुंड, रुँदवाना, रुँधना, रुकना, रुकवाना, रुकावट, रुक्मवती, रुक्मिणी, रुक्मी, रुक्ष, रुख, रुखाई, रुग्न, रुचना, रुचि, रुचिमान, रुचिवर्द्धक, रुज, रुझान, रुठ, रुतबा, रुदन, रुद्र, रुधिर, रुनझुन, रुपया, रुमाली, रुलाई, रुलाना, रुष्ट, रुस्तम, रुहेलखंड आदि ।
- र् + ऊ ( ू) = रूरूई, रूख, रूखा, रूठ, रूठना, रूढ़, रूढ़ि, रूनी, रूप, रूपक, रूपकार, रूपमय, रूपवती, रूपा, रूबरू, रूम, रूमाल, रूल, रूस, रूहानी आदि ।
(2) किसी भी स्वर के साथ किसी दूसरे स्वर की मात्रा या अपनी मात्रा नहीं लगती। जैसे—ओवरेस्ट, औसा, ऐसा, अस, डुस, ऋण आदि लिखना गलत है। (3) 'श्' और 'ह्' के साथ जब 'ऋ' (.) की मात्रा लगती है, तब इनका रूप होता है
श् + ऋ ( ) = १ शृगाल, श्रृंखला, शृंग, शृंगार आदि । ह् + ऋ (,) =ह-हृदय, हृषीकेश, हृष्टपुष्ट आदि।
बारहखड़ी किसी व्यंजन के साथ स्वरों की मात्राएँ (ऋ को छोड़कर) अनुस्वार और विसर्ग के साथ लिखने को बारहखड़ी कहते हैं। जैसे—का कि की कु ख खा खि खी खु खू कू के कै को कौ के कः । खे खै खो खौ खं खः । बारहखड़ी लिखी जाती है।