स्वरों के उच्चारण

स्वरों के उच्चारण प्रायः चार प्रकार से होते

(1) निरनुनासिक,

(2) अनुनासिक,

(3) सानुस्वार

(4) विसर्गयुक्त

निरनुनासिक-यदि स्वरों का उच्चारण सिर्फ मुख से किया जाए, तो ऐसे स्वरों को निरनुनासिक स्वर कहा जाएगा।

जैसे— अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ,औ।

अनुनासिक– यदि स्वरों का उच्चारण मुख और नाक (नासिका) से किया जाए और उसमें कोमलता हो, तो ऐसे स्वरों को अनुनासिक स्वर कहा जाएगा। जैसे—अँ, आँ, इँ, ई / ई, उँ, ऊँ, ऍ, ऍ/ऐ, ओं/ओं, औं/औं निम्नलिखित तालिका से ये बातें और स्पष्ट हो जाती हैं

नोट – ध्यान रखें कि अनुनासिक के लिए चन्द्रबिंदु (*) का प्रयोग होता है। लेकिन, जब अनुनासिक स्वर का चिह्न ( ँ ) शिरोरेखा पर लगता है, तब मजबूरन चन्द्रबिंदु ( ँ ) के बदले बिंदु ( ' ं ) दिया जाता है। ऐसा, लेखन-सुविधा हेतु किया जाता है। इस बिंदु ( ) को आप पंचमाक्षर के लिए प्रयुक्त अनुस्वार न समझें। इसे इस तरह समझेंशिरोरेखा (सिर के ऊपर रेखा) पर चन्द्रबिंदु – सिँगार, यहीँ, चलें, हैं। लेखन सुविधा हेतु चन्द्रबिंदु के बदले बिंदु – सिंगार, यहीं चलें, हैं।

सानुस्वार – इसमें स्वरों के ऊपर अनुस्वार ( ) का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण नाक से होता है और उच्चारण में थोड़ी कठोरता होती है। जैसेअंग, अंगद, अंगूर, ईंट, कंकण आदि ।

विसर्गयुक्त –इसमें स्वरों के बाद विसर्ग ( : ) का प्रयोग होता है। इसका उच्चारण घोष ध्वनि– 'ह' की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी प्रयोग होता है। तत्सम शब्दों में इसका प्रयोग आज भी देखा जाता है। जैसे— अतः स्वतः प्रातः प्रायः पयःपान, मनःकामना आदि ।