हिंदी का आधुनिक रूप

आज जिस रूप में हिन्दी भाषा बोली और लिखी जाती है, वह खड़ीबोली का ही सुधरा हुआ रूप है। खड़ीबोली का प्राचीन स्वरूप लगभग 10वीं शताब्दी से प्रारंभ माना जाता है। 13वीं-14वीं शताब्दी में अमीर खुसरो के द्वारा पहली बार हिन्दी में कविता रची गई, जिसका नाम था— “पहेलियाँ-मुकरियाँ”। यह एक कविता संग्रह है। इसकी दो पंक्तियों को देखें—

एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे।।

मध्यकाल तक खड़ीबोली जनसाधारण की बोली हो चली थी और उत्तर भारत में खूब प्रचलित थी। फिर भी उस समय तक खड़ीबोली का साहित्यिक विकास नहीं हो सका था, क्योंकि ब्रजभाषा, अवधी और मैथिली ही काव्य की भाषाएँ थीं। और, इसी क्रम में सूरदास ने 'ब्रजभाषा' को, तुलसी ने ‘अवधी' को और विद्यापति ने 'मैथिली' को साहित्यिक दृष्टि से चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। 19वीं और 20वीं शताब्दी में ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, अँगरेजी गद्य साहित्य का भारत में प्रसार, सामाजिक और राजनैतिक चेतना का उदय तथा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, राहुल सांकृत्यायन आदि के गद्य साहित्यों के कारण एवं जनसम्पर्क की भाषा होने के कारण उत्तर भारत में हिंदी का झंडा लहराया। फिर तिलक, गाँधी, नेहरू, दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों के जन अभियान ने इस भाषा की प्रगति को और तीव्र कर दिया। फलतः, यह लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष की जनसम्पर्क भाषा हो गई। इसके विकास में चलचित्र का भी अच्छा योगदान रहा।