हिंदी का क्षेत्र एवं बोलियाँ

हिन्दी का क्षेत्र अब बहुत व्यापक हो गया है। यह बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, बँगाल आदि भारतीय सीमा तक ही सीमित नहीं है, वरन् वर्मा, लंका, मॉरिशस, सूरीनाम, दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका तक थोड़ा-बहुत फैला हुआ है। हिन्दी खड़ीबोली से विकसित है, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी बोली में थोड़ी-बहत भिन्नता है।

यहाँ बोली और भाषा के अंतर को समझना जरूरी है। घरेलू या क्षेत्रीय भाषा को 'बोली' कहा जाता है और साहित्यिक भाषा को 'भाषा'।

जैसे—

मुझे भी चाय दीजिए। (यह साहित्यिक हिंदी भाषा है।)

हमरो के चाय द हो। (यह क्षेत्रीय या घरेलू बोली है।)

हिन्दी की बोलियों को अध्ययन की दृष्टि से पाँच भागों में बाँटा जा सकता— (1) पूर्वी, (2) पश्चिमी, (3) राजस्थानी, (4) बिहारी और (5) पहाड़ी हिन्दी।

पूर्वी हिन्दी – इसमें प्रमुख बोलियाँ हैं: अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी । अवधी भाषा में तुलसीकृत 'रामचरितमानस' जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य हैं।

पश्चिमी हिन्दी – इसमें प्रमुख बोलियाँ हैं : ब्रजभाषा, खड़ीबोली, हरियाणवी, बुंदेली और कन्नौजी। ब्रजभाषा में सूरदास और नन्ददास की कृष्णभक्ति से सराबोर उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ हैं।

खड़ीबोली विशेषकर दिल्ली, मेरठ, गाजियाबाद, बिजनौर और सहारनपुर तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

राजस्थानी हिन्दी – राजस्थान प्रदेश में प्रयुक्त बोलियों के समूह को राजस्थानी हिन्दी कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं— मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेवाती, हाड़ोती आदि।

बिहारी हिन्दी – बिहार तथा झारखंड प्रदेशों में प्रयुक्त बोलियों के समूह को बिहारी हिन्दी कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं— मगही, भोजपुरी और मैथिली । मैथिली के आदि कवि 'विद्यापति' की प्रसिद्ध 'पदावली' मैथिली में ही है। अंगिका और बज्जिका बोलियाँ इसी हिन्दी के अंतर्गत आती हैं।

पहाड़ी हिन्दी – हिमाचल की बोली (मंडियाली), गढ़वाल की बोली (गढ़वाली) और कुमाऊँ की बोली (कुमाऊँनी), पहाड़ी हिन्दी कहलाती हैं।