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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहने के लिए मनुष्य को अपने विचारों और भावों को व्यक्त करना पड़ता है तथा दूसरों के द्वारा व्यक्त विचारों और भावों को समझना पड़ता है। हमारे पास इन्हें व्यक्त करने के अनेक साधन हैं। हम शारीरिक मुद्रा या वस्तु संकेत के माध्यम से या मौखिक ध्वनि अथवा लिखित रूप में इन्हें व्यक्त करते हैं। जैसे— मान लीजिए, आपको एक कप चाय की आवश्यकता है इस भाव, विचार या इच्छा को तीन रूप में व्यक्त किया जा सकता है—

  1. कप या चाय की केतली की ओर उंगली से संकेत कर मांगना।
  2. या, मौखिक ध्वनि द्वारा— "कृपया मुझे एक कप चाय दीजिए।"
  3. या, कागज पर लिखकर— "कृपया मुझे एक कप चाय दीजिए।"

चाय मांगने के लिए प्रथम विधि जो आपने अपनाई, उसे भाषा की श्रेणी में नहीं रखा गया है। हां कोमा दूसरा या तीसरा ढंग जो आपने अपनाया— वही भाषा है, अर्थात् मौखिक भाषा और लिखित भाषा। दूसरे शब्दों में— भावों या विचारों के लिए प्रयुक्त अर्थपूर्ण ध्वनि (मौखिक) या ध्वनि-संकेत (लिखित) की व्यवस्था ही भाषा है।